Sunday, January 29, 2012
Sunday, January 22, 2012
तन्हाई ने दी गम
आज मेरे आंगन से आंसू भरकर वह गया
सनाथा का मुखौटा टूट गया.......
अब वह अनाथा सी सिसकती है
आंखौं से मोती गिराकर......
अब एक अनाथा.......................
गुलशन मॆं उडती तितली
अधखुली पंखुडियों को चूमती है
सागर की लहरॆं भी सनाथा है
साथ अम्मा बन सागर है
धरती पर गिरी बारिश भी सनाथा है
मां की तरह स्वांत्वना दी धरती भी
अनाथा की हार पहना दी
आज मेरे पास आंसू की मोती भरी हार है
यह सफर किस ओर.....
साथ मात्र पंखवाले सपने
डूबते सूरज की तरह सिसकती मैं
अकेली.......................
विंदुजा.एं
10 B
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